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संस्कृति की दुहाई देकर आती है साम्प्रदायिकता

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संस्कृति की दुहाई देकर आती है साम्प्रदायिकता विजेंद्र मेहरा नेता जी सुभाष चन्द्र बोस करोड़ों भारतीयों के प्रेरणा स्त्रोत हैं। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में सर्वस्व समर्पण कर दिया बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने अपनी आंखों में आज़ाद भारत का वह ताना बाना बुना जो एकता, अखंडता व भाईचारे की बुनियाद पर खड़ा था। आज उनकी 128वीं जयंती है। उड़ीसा के क्योंझार इलाके में गरीब आदिवासियों की मदद करने वाले व कुष्ठ रोगियों के लिए मयूरभंज कुष्ठ रोग कल्याण केंद्र चलाने वाले ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टुअर्ट स्टेन्स व उनके छोटे - छोटे दो बेटों को दारा सिंह के नेतृत्व में बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने जिंदा जलाकर आज ही के दिन सन 1999 में उनकी साम्प्रदायिक हत्या कर दी थी। पिछले कल ही अयोध्या में राम मंदिर का सरकारी तौर पर राजकीय उद्घाटन हुआ है व देशभर में इस उपलक्ष्य पर सार्वजनिक अवकाश किया गया, यह जानते हुए भी कि भारत का संविधान राजकीय मामलों में धर्म की घुसपैठ व संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा किसी धर्म विशेष के प्रचार - प्रसार की इजाज़त नहीं देता है तथा यह संविधान व लोकतंत्र विरोधी है।  ...

तड़पते भारत की आपदा ही शाइनिंग इंडिया का अवसर है

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तड़पते भारत की आपदा ही शाइनिंग इंडिया का अवसर है विजेंद्र मेहरा           ऑक्सफेम संस्था ने भारत को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। ऑक्सफेम के अनुसार कोरोना महामारी के लॉकडाउन के दौर में भारत के पूंजीपतियों व अमीरों की धन दौलत सम्पदा लगभग 35 प्रतिशत तक बढ़ गयी है। यह तब हुआ है जब भारत के 24 प्रतिशत लोगों की मासिक आय केवल तीन हज़ार रुपये मासिक से भी कम है। देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी ने इस दौर में प्रति घन्टा 90 करोड़ रुपये की आय अर्जित की है। कोरोना काल में अर्जित इस आय से अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत देश के 40 करोड़ मजदूरों को पांच महीने तक गरीबी की मार से बचाया जा सकता है। ऑक्सफेम की "इनइक्वेलिटी वायरस रिपोर्ट" के अनुसार देश के सबसे अमीर सौ खरबपतियों की आय मार्च 2020 से कोरोना महामारी के दौरान इतनी ज्यादा बढ़ी है कि देश के सबसे गरीब 13 करोड़ 80 लाख व्यक्तियों में इस बढ़ी हुई आय को बांट दिया जाए तो उन सबको 94 हज़ार रूपए की आर्थिक मदद दी जा सकती है। याद रखें कि कोरोना महामारी की पहली लहर में मार्च से मई 2020 के बीच लगभग 12 करोड़ 60 लाख मजदूरों की नौकरियां चली गयी थीं...

सवर्ण आयोग की अवधारणा व एक गहरी साजिश

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सवर्ण आयोग की अवधारणा गहरी साजिश भाग - 1 विजेंद्र मेहरा         हिमाचल प्रदेश में आजकल एक बहस छिड़ी हुई है। यह बहस जाति आधारित आरक्षण को बन्द करने, अनुसूचित जाति एवम जनजाति उत्पीड़न रोकथाम कानून को खत्म करने व सवर्ण आयोग के गठन को लेकर है। हालांकि यह बहस बेमानी है,बेईमानी व कपटतापूर्ण है क्योंकि यह बहस दलितों व वंचितों को मिलने वाले जाति आधारित आरक्षण तथा अनुसूचित जाति एवम जनजाति उत्पीड़न रोकथाम कानून को खत्म करने को लेकर है व यह प्रभावशाली तबके द्वारा एक सुनियोजित प्रेरित बहस है। बहस दुष्टतापूर्ण भी है क्योंकि यह सारी बहस सुविधाजनक तरीके से एक ओर प्रभावशाली तबके द्वारा स्वयं के लिए रचे सवर्ण जाति शब्द यानिकि अच्छे वर्ण व दूसरी ओर सदियों से समाज के वंचितों, पिछड़ों, दबे कुचलों, दलितों के मध्य केंद्रित है, जिन्हें सवर्ण अवर्ण मानते हैं यानिकि बुरे वर्ण। इस बहस का दोहरापन तो देखिए कि एक तरफ जाति आधारित आरक्षण व अनुसूचित जाति एवम जनजाति उत्पीड़न रोकथाम कानून को खत्म करने की बात हो रही है और दूसरी ओर इस बात को उठाने वाले जाति के आधार पर ही सामान्य जातियों के लिए सवर्ण आयोग गठ...

आंदोलन से आखिर इतनी नफरत क्यों

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  विजेंद्र मेहरा आजकल आंदोलन शब्द के मायनों पर देश व दुनिया में खूब चर्चा चल रही है। यह बहस भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किसानों द्वारा किये जा रहे आंदोलन को आंदोलनजीवी कहने व उन्हें इस शब्द के ज़रिए अपमानित करने के बाद बहुत तेज़ हो गयी है। आंदोलन क्या होता है? इसके क्या मायने हैं? इस पर भारत के महान लेखक व उपन्यासकार मुंशी प्रेम चंद,जिनकी लेखनी मुख्यतः गरीबों व मेहनतकश अवाम पर थी,ने क्या खूब लिखा है।   भारत के प्रधानमंत्री ने किसान आंदोलन पर तंज कसते हुए देश की संसद में किसानों को आंदोलनजीवी करार दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें व उनकी विचारधारा के लोगों को आंदोलन शब्द से ही नफरत है। इसलिए ही वह किसानों व किसान आंदोलन का मज़ाक उड़ा रहे हैं। सरकार की संकुचितता इस बात से भी प्रकट होती है कि जब बाहरी देशों के लोग प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते हैं तो यह कहा जाता है कि भारत का दुनिया में डंका बज रहा है परन्तु जब यही लोग सरकार की   तो यह कहा जाता है कि यह हमारा अंदरूनी मसला है। सरकार का दोहरा रवैया जगजाहिर है। आखिर इतनी तंग मानसिकता क्यों? ...

नाथपा झाकड़ी का मजदूर आंदोलन व कॉमरेड देवदत्त की शहादत

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नाथपा झाकड़ी का मजदूर आंदोलन व कॉमरेड देवदत्त की शहादत विजेंद्र मेहरा           उस वक्त एशिया की सबसे बड़ी 1500 मेगावाट नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना शिमला व किन्नौर जिला में बन रही थी। इसकी डैम साइट किन्नौर जिला के नाथपा में थी व पावर हाउस शिमला जिला के झाकड़ी में था। इसकी सुरंग भी उस वक्त एशिया में सबसे बड़ी थी जिसकी लम्बाई 27 किलोमीटर थी। इस परियोजना का निर्माण कार्य सरकारी कम्पनी नाथपा झाकड़ी पावर कॉर्पोरेशन(एनजेपीसी) कर रही थी। परियोजना का कार्य लगभग 60 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ था। इसी एनजेपीसी का बाद में सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड(एसजेवीएन) नामकरण हुआ। इसने निर्माण का कार्य ठेके पर तीन निजी कम्पनियों को दिया। ये कम्पनियां थीं भारतीय कम्पनी कॉन्टिनेंटल व कैनेडा की कम्पनी फाउंडेशन को मिलाकर बनाई गई कॉन्टिनेंटल फाउंडेशन जॉइंट वेंचर(सीएफजेवी),भारतीय कम्पनी हिन्दोस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी(एचसीसी) व इटली की कम्पनी इम्परिजिलो को मिलाकर बनाई गई नाथपा झाकड़ी जॉइंट वेंचर(एनजेजेवी) कम्पनी व भारतीय कम्पनी जेपी व दक्षिण कोरिया की हयूंडाई कम्पनी की कंसोर्टियम कम्पनी को...

पार्वती आंदोलन में कॉमरेड अशोक कुमार की शहादत

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पार्वती आंदोलन में कॉमरेड अशोक कुमार की शहादत विजेंद्र मेहरा           कुल्लू जिला के सैंज व गड़शा वैली में निर्माणाधीन पार्वती पनबिजली परियोजना कुल 2051 मेगावाट की परियोजना है। नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी) लिमिटेड द्वारा बनाई जा रही यह परियोजना तीन चरणों में प्रस्तावित है। पार्वती चरण - 1 परियोजना 651 मेगावाट, पार्वती चरण - 2 परियोजना 800 मेगावाट व पार्वती चरण - 3 परियोजना 600 मेगावाट की है। खीर गंगा से बरशेणी के मध्य प्रस्तावित पार्वती चरण - 1 परियोजना का कार्य हर वर्ष लगभग सात-आठ महीने बर्फ होने का कारण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। सिऊंड, शलाह, शलवाड़ा, बिआली व लारजी के मध्य स्थित 600 मेगावाट की पार्वती चरण-3 परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। इस परियोजना का कार्य वर्ष 2007 में शुरू हुआ व वर्ष 2015 में समाप्त होकर इस परियोजना में बिजली पैदा होना शुरू हो गयी। इस परियोजना की सिऊंड स्थित डैम व हैड रेस टनल का कार्य लार्सन एन्ड टुब्रो (एल एन्ड टी) कम्पनी ने किया। बिआली स्थित पावर हाउस व व टेल रेस टनल (टी आर टी) का कार्य जैगर गैमन जॉइंट वेंचर कम्प...

बढ़ते कदम और चुनौतियां हज़ार

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        बढ़ते कदम और चुनौतियां हज़ार विजेंद्र मेहरा 30 मई मजदूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियनज़ अथवा भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र का स्थापना दिवस है। इस दिन सन 1970 में मजदूरों के लोकप्रिय व पसंदीदा संगठन जिसे हम सभी सीआईटीयू व सीटू भी कहते हैं,का जन्म हुआ। एकता व संघर्ष की बुनियाद पर खड़े इस संगठन का लक्ष्य शोषणविहीन समाज की स्थापना है जहां इंसान के हाथों इंसान के शोषण पर रोक लगे। निश्चित तौर पर यह पूंजीवाद की कब्र खोद कर समाजवाद की स्थापना किए बिना सम्भव नहीं है। मजदूरों की एकता व वर्ग संघर्ष के ज़रिए ही शोषणमुक्त समाज की परिकल्पना सम्भव है। बगैर वर्ग संघर्ष व व्यवस्था परिवर्तन के मजदूरों की जिंदगी में आमूलचूल परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है। इसी समझ की बुनियाद पर सूई से लेकर जहाज़ व हर वस्तु का उत्पादन करने वाले मजदूर वर्ग को इस पूंजीवादी युग में अपनी भूमिका को समझना है तथा शोषण,ज़ुल्म,अत्याचार,दमन की बुनियाद पर खड़े पूंजीवादी तंत्र को ध्वस्त करके न्याय,समानता,बराबरी सहित अपने सभी मौलिक अधिकारों को हासिल करने की लड़ाई लड़नी है। मजदूर वर्ग की मांगों को पूंजीपति शासक वर्ग की...