हि. प्र. के पुलिसकर्मी आखिर आंदोलन पर क्यों

हि. प्र. के पुलिसकर्मी आखिर आंदोलन पर क्यों

विजेंद्र मेहरा

          आखिर दो महीने बाद फिर से हैशटैग जस्टिस फ़ॉर एच पी पुलिस शुरू हो गया है। एक बार फिर से पुलिस जवानों ने अपनी मैस का खाना बॉयकॉट कर दिया है। रोजनामचे में मैस खाना बॉयकॉट के घटनाक्रम को बाकायदा हर  रोज़ दर्ज़ किया जा रहा है। पुलिस जवान अपने शोषण के खिलाफ एक बार फिर से मुखर हैं व न्याय की मांग कर रहे हैं। वे किसी भी कीमत पर पीछे हटने का तैयार नहीं हैं। सरकार व उनके आलाधिकारियों का दबाव भी काम नहीं कर रहा है व आंदोलन निरन्तर आगे बढ़ रहा है। संशोधित पे बैंड मांग रहे पुलिसकर्मियों ने अब सोशल मीडिया पर घोषणा कर दी है कि वे गणतंत्र दिवस परेड के दौरान ही आत्मदाह परेड भी करेंगे। आंदोलन के इस तौर-तरीके पर जनता में अलग-अलग राय हो सकती है परन्तु सच्चाई तो यह है कि आंदोलन का यह रूप पुलिसकर्मियों के आक्रोश को साफ तौर पर दिखाता है। एक बात समझने की आवश्यकता है कि अन्याय,शोषण,ज़ुल्म,अत्याचार के खिलाफ आंदोलन की भावना भारत की जनता की नसों में कूट-कूट कर भरी है व एक ऐतिहासिक विरासत समेटे हुए है। अंग्रेजों के खिलाफ मेजर जयपाल जैसे पुरोधाओं का नेवी विद्रोह देश के आंदोलन की ऐसी है एक बेशकीमती धरोहर है। हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों का आंदोलन इसी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। आखिर क्या है हैशटैग जस्टिस फ़ॉर एच पी पुलिस? क्यों हैं हिमाचल प्रदेश पुलिस के जवान आंदोलन की राह पर?27 नवम्बर 2021 को शनिवार का दिन एक खास दिन था। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में एक अनोखी घटना घटी। इस दिन प्रदेश की राजधानी शिमला स्थित मुख्यमंत्री के सरकारी आवास ऑक ओवर में सैंकड़ों पुलिस कर्मी अपनी डयूटी छोड़कर इकट्ठा हो गए। शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर रिहर्सल कर रहे पुलिस जवान व  शहर के सभी सैंकड़ों जवान एकाएक लामबंद होकर ओक ओवर पहुंच गए। जवान वर्दी में थे। सैंकड़ों जवान देखते ही देखते ओक ओवर पहुंच गए। पुलिस अधिकारियों को इसकी खबर व भनक तक नहीं लगी। मुख्यमंत्री आवास का नज़ारा देखते ही बनता था। अक्सर जनता के आंदोलनों में जनता के दूसरी तरफ खड़े पुलिस जवान आज स्वयं जनता की तरह  आंदोलन मोड में थे। वे कई घण्टों तक वहां डटे रहे। जवानों का यह मूक आंदोलन व्यवस्था पर कई गहरे प्रश्न छोड़ गया। हिमाचल के आंदोलन के इतिहास में एक नया पन्ना भी जोड़ गया। किसी ने कभी शायद सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन खाकी वर्दीधारी पुलिस जवान भी आंदोलन में कूद सकते हैं। सिस्टम,पुलिस अधिकारियों व पुलिस एक्ट 1861 का डर तो मानो जवानों के ज़हन में था ही नहीं। प्रदेश सरकार सचिवालय में किसी सरकारी अधिकारी,मंत्री या मुख्यमंत्री से ऑन डयूटी मिलने के लिए जिस पुलिस जवान को बाकायदा अधिकारियों से इज़ाज़त लेना अनिवार्य था व जो एक तरह से सपने जैसा था,आज वे मुख्यमंत्री आवास पर वर्दी में मूक प्रदर्शन के ज़रिए भारी गुस्सा व आक्रोश ज़ाहिर कर रहे थे। यह स्थिति हाल-फिलहाल में फ्रांस की राजधानी पेरिस में पेंशन सुधारों व ट्रांसपोर्ट कर्मियों के समर्थन में हुए चार लाख पुलिस जवानों के आंदोलन सी प्रतीत हो रही थी। 
हिमाचल प्रदेश पुलिस के जवान गुस्से में क्यों हैं? वे क्यों संघर्ष पर उतर गए? आखिर माज़रा क्या है? बात साफ है। पूरी जनता की तरह पुलिस महकमे के जवान भी संकट में हैं। यह संकट आर्थिक भी है,सामाजिक भी। यह देश में सन 1990 के बाद उपजी नई आर्थिक नीतियों का संकट है। यह पूंजीवाद के खोखलेपन का संकट है। यह अमीर के और अमीर व जनता की तकलीफें बढ़ने का संकट है। जनता के मेहनकश तबकों मजदूरों,किसानों,खेतिहर मजदूरों,छोटे कारोबारियों,स्वरोजगार व मनरेगा जैसे कार्यों में लगे लोगों की तरह ही सरकारी कर्मचारी संकट से अछूते नहीं हैं। उनमें पुलिस महकमे के कर्मचारी भी शामिल हैं। वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को मिलने वाले 10300 रुपये के बजाए महज़ 5910 रुपये संशोधित वेतन देकर उनका भारी शोषण किया जा रहा है। हाल ही में हुई जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। इस बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है। सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं हैं। पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है। थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व जांच अधिकारी(आईओ) को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के तहत बच्चों के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
प्रदेश में अंग्रेजों के जमाने में बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इस सबसे पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं। पुलिस में स्टाफ बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है। उनके रिलीवर तक नहीं हैं। प्रदेश की  राजधानी शिमला तक के कुछ थानों के पास अपनी गाड़ी तक नहीं है। वे निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीने का ज़्यादा वेतन दिया जाता है और वह भी आज के वेतन के अनुसार नहीं। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को  वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी इसके नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट में पुलिसकर्मियों के पक्ष के प्रावधानों को तो लागू नहीं किया जाता परन्तु कर्मियों को दंडित करने वाले प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं। इसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है।पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
पुलिसकर्मी अपनी मांगों को लेकर इस बार आर-पार की लड़ाई के मूड़ में हैं। इसलिए ही उनका प्रदर्शन केवल 27 नवम्बर को नहीं रुका। मुख्यमंत्री ने पुलिसकर्मियों को दोबारा ऐसा न करने की नसीहत दी व अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो। पुलिसकर्मियों ने मुख्यमंत्री की चेतावनी को दरकिनार करके सोशल मीडिया पर हैशटैग जस्टिस फ़ॉर एचपी पुलिस के नाम से अभियान चलाकर जनता से अपनी मांगों के लिए समर्थन मांगा। जनता उनकी मांगों का भरपूर समर्थन कर रही है। उनके परिजनों ने आंदोलन को तेज करते हुए 5 दिसम्बर 2021 को बिलासपुर जिला में निर्माणाधीन एम्स अस्पताल में ओपीडी का उद्घाटन करने आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा का घेराव कर दिया व मांगों को पूर्ण करने की मांग की। एक तरफ पुलिसकर्मी अपनी मांगों के लिए आंदोलनरत हैं,वहीं दूसरी ओर भाजपा की प्रदेश सरकार उनका दमन करने की ओर आगे बढ़ रही है। इसी क्रम में आंदोलनरत पुलिसकर्मियों के माता-पिता,पत्नी व बच्चों सहित अन्य परिजनों पर मुकद्दमे लाद दिए गए हैं। अब जनता को पुलिसकर्मियों के आंदोलन को सफल बनाने के लिए आगे आना होगा क्योंकि जनता की व्यापक एकता ही हुक्मरानों के दमन का मुकाबला कर सकती है व पुलिसकर्मियों की जायज़ मांगें हासिल की जा सकती हैं।

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