नाथपा झाकड़ी का मजदूर आंदोलन व कॉमरेड देवदत्त की शहादत

नाथपा झाकड़ी का मजदूर आंदोलन व कॉमरेड देवदत्त की शहादत

विजेंद्र मेहरा

          उस वक्त एशिया की सबसे बड़ी 1500 मेगावाट नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना शिमला व किन्नौर जिला में बन रही थी। इसकी डैम साइट किन्नौर जिला के नाथपा में थी व पावर हाउस शिमला जिला के झाकड़ी में था। इसकी सुरंग भी उस वक्त एशिया में सबसे बड़ी थी जिसकी लम्बाई 27 किलोमीटर थी। इस परियोजना का निर्माण कार्य सरकारी कम्पनी नाथपा झाकड़ी पावर कॉर्पोरेशन(एनजेपीसी) कर रही थी। परियोजना का कार्य लगभग 60 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ था। इसी एनजेपीसी का बाद में सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड(एसजेवीएन) नामकरण हुआ। इसने निर्माण का कार्य ठेके पर तीन निजी कम्पनियों को दिया। ये कम्पनियां थीं भारतीय कम्पनी कॉन्टिनेंटल व कैनेडा की कम्पनी फाउंडेशन को मिलाकर बनाई गई कॉन्टिनेंटल फाउंडेशन जॉइंट वेंचर(सीएफजेवी),भारतीय कम्पनी हिन्दोस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी(एचसीसी) व इटली की कम्पनी इम्परिजिलो को मिलाकर बनाई गई नाथपा झाकड़ी जॉइंट वेंचर(एनजेजेवी) कम्पनी व भारतीय कम्पनी जेपी व दक्षिण कोरिया की हयूंडाई कम्पनी की कंसोर्टियम कम्पनी को मिलाकर बनाई गई जेपी कंसोर्टियम कम्प
नी। इस परियोजना की 250 मेगावाट की छः यूनिटें थीं जिसमें से पहली यूनिट ने वर्ष 2003 व छठी यूनिट ने वर्ष 2005 में बिलजी का उत्पादन शुरू किया।

       इस परियोजना का निर्माण कार्य सन 1994 में शुरू हुआ। इसमें लगभग दस हज़ार मजदूर कार्यरत थे जिसमें से आठ हजार ठेका मजदूर थे। एसजेवीएन कम्पनी के दो हज़ार नियमित कर्मचारी हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड(एचपीएसईबी) से सेकंडमेन्ट या प्रतिनियुक्ति पर परियोजना कार्य के लिए बुलाए गए थे। इस परियोजना के इंजीनयर विदेशी कम्पनियों ने अपने देशों से लाए थे। कुल आठ हजार ठेका मजदूरों में से सत्तर प्रतिशत प्रवासी मजदूर थे व अन्य तीस प्रतिशत हिमाचल प्रदेश से सम्बंध रखते थे।                   यहां पर कॉमरेड देवदत्त की शहादत व ऐतिहासिक मजदूर आंदोलन ने मजदूर वर्ग के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ दिया। इस शहादत से पहले ही यह परियोजना मजदूर आंदोलन का केंद्र बिंदु बन चुकी थी। सीएफजेवी कम्पनी में सन 1994 में सीटू से सम्बंधित यूनियन बनी। दूसरी कम्पनी एनजेजेवी में वर्ष 1994 में फेडरेशन स्थापित हुई। शुरुआत में फेडरेशन के माध्यम से मजदूरों ने कुछ सुविधाए हासिल कीं। कुछ समय बाद फेडरेशन पूरी तरह कम्पनी की दलाल बन गयी। इसके बाद मजदूरों के एक धड़े ने इंटक का गठन कर दिया व इसके माध्यम से मांगों को उठाया। यह यूनियन बाद में इंटक को छोड़कर जनवरी 1999 में सीटू से सम्बंधित हो गयी। तीसरी कम्पनी जेपी कंसोर्टियम में यूनियन बनाने व इसका पंजीकरण करने के बावजूद भी मजदूर इसे कायम रखने में विफल रहे। इस तरह अंततः तीन में से दो कम्पनियों में मजदूर यूनियन बनाने में सफल हुए व मजदूरों की मांगों को लेकर निरन्तर संघर्ष चलता रहा।

              इस परियोजना के मजदूरों का संघर्ष हिमाचल प्रदेश के मजदूर आंदोलन के इतिहास का सबसे सुनहरा पन्ना है। इस आंदोलन ने ही प्रदेश की सभी बिजली परियोजनाओं में सीटू से सम्बंधित यूनियनों की बुनियाद डाली व इस तरह हाईडल प्रोजेक्टों की यूनियनें सीटू के इतिहास में सबसे मजबूत यूनियनें बन कर उभरीं। वर्ग संघर्ष की परिभाषा मजदूरों ने आंदोलन की इसी पाठशाला में सीखी। बात मई 1994 की है जब सीएफजेवी कम्पनी के मजदूरों ने शोषण से तंग आकर सीएफजेवी वर्करज़ यूनियन का गठन कर दिया। मजदूरों में कम्पनी का भारी खौफ था इसलिए यह यूनियन दिसम्बर 1994 तक भूमिगत रही। मजदूर इकट्ठा होने की प्रक्रिया में थे। यह एक स्वतंत्र यूनियन थी व किसी से भी सम्बन्धित नहीं थी। इसी दौरान सीटू प्रदेशाध्यक्ष कॉमरेड राकेश सिंघा व पंजाब के सीटू नेता व थीन डैम वर्करज़ यूनियन शाहपुर कंडी पठानकोट के अध्यक्ष कॉमरेड नत्था सिंह किन्नौर जिला के भावानगर में हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड में कार्यरत दैनिक भोगी कर्मचारियों की मांगों को लेकर एचपीएसईबी बिजली मजदूर एकता यूनियन के संघर्ष व जलसे में शामिल होने के लिए आए हुए थे। जलसे में क्रांतिकारी सम्बोधन हुआ। इसके बाद बिजली बोर्ड के अधिकारियों के साथ यूनियन व सीटू नेताओं की जबरदस्त नोंकझोंक हो गयी। टकराव की स्थिति बन गयी। सीएफजेवी यूनियन के निर्माताओं में से एक रविन्द्र कुमार जोकि नाथपा झाकड़ी परियोजना में इलेक्ट्रिशियन के रूप में कार्यरत थे , ने यह सम्बोधन सुना व क्रांतिकारी जलसा देखा। वह सीटू की कार्यप्रणाली से बेहद प्रभावित हुए व परियोजना में लौट कर अपने मजदूर साथियों से घटनाक्रम का ज़िक्र किया। इस तरह यूनियन की सीटू से जुड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई। कॉमरेड रविन्द्र कुमार ने एचपीएसईबी बिजली मजदूर एकता यूनियन के स्थानीय नेता प्रकाश चंद से मुलाकात कर सीटू से जुड़ने की इच्छा जाहिर की। भावानगर में बैठक हुई व यूनियन का सीटू से सम्बन्धता का क्रम शुरू हो गया। विधिवत रूप से कमेटी का गठन किया गया। मंडी से ताल्लुक रखने वाले हेमराज को अध्यक्ष व कांगड़ा के बैजनाथ से सम्बंध रखने वाले रविन्द्र कुमार को महासचिव चुना गया। रविन्द्र कुमार निरन्तर 12 वर्षों तक यूनियन के महासचिव रहे। इस दौरान अध्यक्ष बदलते रहे। हेमराज के बाद ऊना से सम्बंध रखने वाले दीपक गुप्ता व मंडी से सम्बंध रखने वाले कॉमरेड राजेश शर्मा सात वर्ष तक यूनियन के अध्यक्ष रहे। कॉमरेड रविन्द्र कुमार व राजेश शर्मा वर्तमान में क्रमशः सीटू के राज्य उपाध्यक्ष व सचिव हैं। रविन्द्र कुमार भूतपूर्व सीटू प्रदेशाध्यक्ष हैं। दोनों मजदूर आंदोलन में कुल्वक्ति कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं व बेहतरीन संगठनकर्ता हैं। एक समय आंदोलन के नेता मोहन लाल भी कुल्वक्ति बने व काफी समय संगठन के लिए कार्य किया। 

       मजदूरों में कम्पनी प्रबंधन का भारी खौफ था। मजदूरों में प्रबल भावना थी कि यूनियन का पंजीकरण हर हाल में होना चाहिए। यूनियन के पंजीकरण के साथ ही 24 दिसम्बर 1994 को यूनियन को सार्वजनिक कर दिया गया। प्रबंधन ने यूनियन नेताओं को डराने धमकाने का क्रम शुरू किया। सब यूनियन नेताओं को नौकरी से बर्खास्त करने की धमकियां मिलने लगीं। प्रबंधन ने इस कार्य के लिए सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के बाहर से सम्बंध रखने वाले प्रवासी मजदूर नेताओं को चुना। कम्पनी के सुरक्षा प्रभारी हरनाम सिंह ने एक दिन बिहार से सम्बंध रखने वाले मजदूर यूनियन के सलाहकार महाराज सिंह जोकि पम्प ऑपरेटर थे,को मजदूरों के सामने बुरी तरह पीट दिया व परियोजना स्थल को तुरन्त छोड़ने की धमकी दी। प्रबंधन ने महाराज सिंह को कम्पनी की गाड़ी में डाल कर रामपुर लाया। वहां से उन्हें चंडीगढ़ की बस में बिठाकर धमकी दी कि वह दोबारा परियोजना में नहीं दिखने चाहिए। मजदूरों में महाराज सिंह के लापता होने की खबर फैल गयी। दूसरे दिन यूनियन की बैठक निगुलसरी में हुई व आंदोलन का निर्णय हुआ। आंदोलन के बहाने यह वास्तव में मजदूरों में एकता व संघर्ष की भावना उत्पन्न करने तथा मजदूरों में यूनियन के पंजीकरण को सार्वजनिक करने का एक मौका था। मजदूरों को असल में आंदोलन की कोई भी जानकारी नहीं थी। उनकी केवल एक ही मांग थी कि महाराज सिंह को ढूंढ कर वापिस लाया जाए। 

           यूनियन के निर्देशनुसार 25 दिसम्बर 1994 को बधाल एडिट के 150 मजदूरों ने काम बंद कर दिया व जुलूस के रूप में निगुलसरी एडिट पहुंचे। इन दोनों जगह के मजदूर शोल्डिंग एडिट पहुंचे। यहां के मजदूर भी जुलूस में जुड़ गए। जुलूस नाथपा एडिट पर पहुंचा। बैचिंग प्लांट,मेकेनिकल वर्कशॉप, मेन स्टोर,डिसिल्टिंग चेम्बर व डैम साइट के मजदूर भी जुलूस का हिस्सा बन गए। जुलूस सुबह 8 बजे शुरू होकर शाम को 6 बजे नाथपा स्थित कम्पनी कार्यालय एरिया - 3 कैम्प पहुंचा। मजदूर भूखे-प्यासे आंदोलन पर डटे रहे। मजदूरों ने यहां पहुंच कर दिन रात का प्रदर्शन शुरू कर दिया। मजदूर 25 दिसम्बर 1994 से 1 जनवरी 1995 तक हड़ताल पर डटे रहे। इसमें लगभग 1200 मजदूर शामिल हुए। महाराज सिंह की पिटाई व गुमशुदगी से शुरू हुए आंदोलन में श्रम कानून लागू करने,डबल ओवरटाइम वेतन भुगतान,साप्ताहिक अवकाश,नियमित वेतन भुगतान आदि मांगें जुड़ गईं। मजदूरों को ओवरटाइम का डबल के बजाए सिंगल भुगतान किया जाता था और वह भी पांच महीने बाद। कॉमरेड राकेश सिंघा 31 दिसम्बर को नाथपा पहुंचे व जुलूस को सम्बोधित किया। उन्होंने 1 जनवरी 1995 को भी मजदूरों को सम्बोधित किया। इसके बाद इसी दिन कम्पनी प्रबंधन व मजदूरों में समझौता हो गया। सभी श्रम कानूनों को लागू करने व सभी दैनिक भोगियों को 31 मार्च 1995 से पहले नियमित करने का निर्णय हुआ। 
            सीटू के नेतृत्व में सबसे ज़्यादा शोषित कम्पनी के अधीन कार्य करने वाले ठेकेदारों के पीस रेट वर्करज़ (पीआरडब्ल्यू) को यूनियन में संगठित करने का कार्य शुरू हुआ। यह प्रदेश में पहली बार हो रहा था। सीटू से पूर्व कार्यरत रही फेडरेशन, इंटक व एटक की यूनियन ने कभी भी इन्हें संगठित करने की कोशिश नहीं की थी। सीटू ने यह परंपरा तोड़ी व यह शुरुआत एक नई पहल थी। सीटू ने यह अनुभव हड़तालों से लिया। जब भी कम्पनी मजदूर हड़ताल करते थे तो ठेका मजदूर 60 प्रतिशत काम सुनिश्चित कर लेते थे। इस से कम्पनी को फायदा मिलता था व मजदूरों की शक्ति बंट जाती थी। सीटू ने सन 1996 में नाथपा झाकड़ी प्रोजेक्ट कॉन्ट्रैक्ट वर्करज़ यूनियन का गठन किया जिसमें लगभग 1300 मजदूर जुड़े। अब प्रोजेक्ट में यूनियन में कुल मजदूरों की संख्या 2500 के करीब हो गयी। सीएफजेवी व कॉन्ट्रैक्ट वर्करज़ यूनियन ने पहली अपनी मांगों पर  संयुक्त मांग-पत्र दिया। प्रबंधन ने एक ही समझौते के बजाए सीएफजेवी यूनियन व कॉन्ट्रैक्ट वर्करज़ यूनियन के साथ दो अलग समझौते किये। प्रदेश के ठेका  मजदूरों की यूनियन के साथ यह पहला समझौता था। नियमित मजदूरों को 1200 रुपये खाने का भत्ता (फ़ूड अलाउंस), वेतन में 25 प्रतिशत जनजातीय क्षेत्र भत्ता (ट्राइबल अलाउंस),18 प्रतिशत विशेष भत्ता (स्पेशल अलाउंस), मजदूरों को सप्ताह में एक बार भावानगर से रामपुर बाजार जाने की बस आदि सुविधाएं मिलीं।  ठेका मजदूरों को 25 प्रतिशत मुश्किल क्षेत्र भत्ता (डिफिकल्ट एरिया अलाउंस), 500 रुपये फ़ूड अलाउंस, ठेकेदार द्वारा हर महीने सात तारीख तक वेतन न देने पर कम्पनी द्वारा वेतन देने, ईपीएफ, 8.33 प्रतिशत बोनस, छुट्टियों, ठेका मजदूर की मृत्यु पर पूरा खर्चा व परिवार को एक लाख रुपये की आर्थिक मदद की सुविधा मिली। 

              मजदूरों के आंदोलन के  दबाव के चलते प्रदेश के इतिहास में पहली बार मजदूरों को रहने की उचित व्यवस्था मिली। उन्हें मुफ्त आवास, चारपाई, गद्दा, रजाई, रूम हीटर, तकिया, चादर, टिफिन बॉक्स, बाल्टी, कप, गर्म पानी, शौचालयो, 50 मजदूरों को फैमिली क्वार्टर, बच्चों को स्कूल जाने के लिए बस सुविधा आदि की उचित व्यवस्था हुई। एनजेजेवी में मजदूरों को बिल्कुल मुफ्त खाने की सुविधा प्राप्त हुई। सीएफजेवी में 1200 रुपये मासिक फ़ूड अलाउंस की सुविधा मिली। ठेका मजदूरों को 500 रुपये मासिक फ़ूड अलाउंस की सुविधा मिली। यह सब हिमाचल प्रदेश के मजदूर आंदोलन में एक अनोखा उदाहरणीय घटनाक्रम था।

           इस आंदोलन में सन 1995-96 में सीटू प्रदेशाध्यक्ष कॉमरेड राकेश सिंघा की बेहद  महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्हें प्रदेश सरकार द्वारा एक पुराने झूठे मुकद्दमे में गिरफ्तार करने के कारण दो वर्ष का नाहन में कारावास भुगतना पड़ा। इस के बाद सन 1996 - 98 तक तत्कालीन सीटू प्रदेश महासचिव डॉ कश्मीर ठाकुर ने मोर्चा संभाला।  सीएफजेवी में रविन्द्र कुमार, राजेश शर्मा, परियोजना में प्रबन्धन द्वारा नौकरी से बर्खास्त किये गए गौरी दत्त, राजिंद्र सिंह, रणजीत सिंह, दीना नाथ, मोहन लाल व दीपक कुमार आदि ने आंदोलन का बेहतरीन नेतृत्व किया। यहां पर हुए 16 दिन के आंदोलन में सीटू के तत्कालीन कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष कॉमरेड ओम प्रकाश (ओ पी) चौहान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कंस्ट्रकशन वर्करज़ फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीडब्ल्यूएफआई) के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड देबंजन चक्रवर्ती, थीन डैम यूनियन नेता नत्था सिंह व मुल्क राज आदि की मजदूरों की वैचारिक व राजनीतिक शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका रही।

नाथपा झाकड़ी परियोजना में आंदोलन को दबाने के लिए तीनों कम्पनी प्रबंधनों ने अनेक हथकंडे अपनाए। एनजेजेवी यूनियन में आन्दोलन को दबाने के लिए साथी देवदत्त की हत्या कर दी गयी। सीएफजेवी यूनियन महासचिव कॉमरेड रविन्द्र कुमार पर कम्पनी के दिशानिर्देश पर बलात्कार के प्रयास का झूठा मुकद्दमा दायर किया गया। बाद में न्यायालय में आरोप लगाने वाली महिला ने न्यायधीश के सामने कबूल किया कि कम्पनी प्रबंधन के निर्देश पर उसने यह झूठा मुकद्दमा दायर किया था। न्यायालय ने रविन्द्र कुमार को मुकद्दमे से बाइज़्ज़त बरी किया। कॉमरेड राजिंद्र सिंह की आंदोलन में निर्मम पिटाई की गयी। मजदूरों पर दर्जनों मुकद्दमे दायर किये गए। सीएफजेवी यूनियन के सहयोग से सन 1995 में जेपी कंसोर्टियम में 2 हज़ार मजदूरों ने यूनियन का गठन किया। इस पंजीकृत यूनियन पर भारी दमन हुआ। जेपी यूनियन के नेताओं पर गेट मीटिंग के दौरान कम्पनी प्रबंधन का बर्बर हमला हुआ। उनकी टांगें, बाजुएं तोड़ दी गईं। उनके सिर फोड़ दिए गए। उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बावजूद भी मजदूरों के हौंसले बुलंद रहे व वर्ग संघर्ष जारी रहा।             इस आंदोलन में  मजदूरों ने अपने अनुभव से सीखा कि मजदूर आंदोलन की सफलता के लिए परियोजना के इर्द-गिर्द के किसानों, युवाओं, छात्रों व जनता के अन्य हिस्सों को लामबंद करना बेहद जरूरी है। हिमाचल किसान सभा, भारत की जनवादी नौजवान सभा(डीवाईएफआई) व छात्र संगठन एसएफआई का गठन इसी अनुभव से हुआ व इसमें यूनियन की भूमिका उदाहरणीय रही। इन संगठनों के ज़रिए जनता की मांगें बुलन्द की गईं। हिमाचल किसान सभा के निर्माण में कॉमरेड राकेश सिंघा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने व अन्य किसान नेताओं ने परियोजना स्थल के इर्द-गिर्द के गांवों में घर-घर जाकर किसानों को जागृत करके लामबंद किया। किसान सभा ने स्थानीय जनता के रोज़गार, मुआवजा, पानी के सूखे चश्मों, स्थानीय विकास, सड़कों, नाथपा, भावानगर व कोटला में स्थित कम्पनी अस्पतालों आदि के मुद्दे पर जबरदस्त संघर्ष किया। किन्नौर की राजधानी रिकांगपिओ में चार बार किसानों, नौजवानों व छात्रों की भारी लामबंदी हुई जिसमें सैंकड़ों लोग शामिल हुए।

              सीएफजेवी यूनियन की खासियत यह रही कि इसने जनता के व्यापक हिस्सों को लामबंद करने के लिए बिरादराना संगठनों को खड़ा किया। इन संगठनों व जम्मू कश्मीर के हाईडल आंदोलन की लगातार आर्थिक मदद की। शिमला में सीटू प्रदेश कार्यालय के निर्माण, मंडी व हमीरपुर कार्यालयों के निर्माण, कांगड़ा, सिरमौर व किन्नौर सीटू जिला कमेटियों की भारी आर्थिक मदद की। 

        वर्ष 1998 में सीएफजेवी, एनजेजेवी व कॉन्ट्रैक्ट वर्करज़ यूनियनों के मजदूरों ने मजदूरों की मांगों पर एक समन्वय समिति (कॉओर्डिनेशन कमेटी) का गठन किया जिसका अध्यक्ष रविन्द्र कुमार को चुना गया। समिति ने समान काम के लिए समान वेतन के माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाया। समिति ने सीएफजेवी, एनजेजेवी व कॉन्ट्रैक्ट मजदूरों के लिए एनजेपीसी के मजदूरों की तर्ज़ पर बराबर वेतन मांगा। इसके लिए समिति ने चमेरा चरण - 1 की खैरी साइट में कार्यरत कॉन्टिनेंटल कम्पनी में कार्यरत मजदूरों को एनएचपीसी कर्मियों के बराबर वेतन देने के सन्दर्भ में मजदूर यूनियन एटक द्वारा हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका को आधार बनाया। इस याचिका में उच्च न्यायालय ने अपने आदेशानुसार बनाई गई श्रमायुक्त राज मणि त्रिपाठी की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशों पर कॉन्टिनेंटल कम्पनी के ड्राइवरों, मेस स्टाफ, माली सहित छः तरह की श्रेणियों को एनएचपीसी कर्मियों के बराबर वेतन देने का ऐतिहासिक निर्णय दिया था। परियोजना में उच्च न्यायालय का बराबर वेतन का निर्णय तो लागू नहीं हो पाया परन्तु तीन महीने के आंदोलन के बाद सीएफजेवी व कॉन्ट्रेक्ट वर्करज़ यूनियन दोनों 30 प्रतिशत वेतन बढोतरी करवाने में सफल हुईं। एनजेजीवी यूनियन का आंदोलन लम्बा चला। 

       निर्माणाधीन नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना के मजदूर आंदोलन में एक नया मोड़ तब आया जब एनजेजेवी यूनियन सम्बन्धित सीटू के मजदूरों ने श्रम कानूनों को लागू करने के लिए 19 मार्च 1999 को अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी जोकि 20 अगस्त 1999 तक चली। पूरे पांच महीने तक चली इस हड़ताल के दौरान ही 25 जून 1999 को इटली की कम्पनी इम्परिजिलो व भारतीय कम्पनी हिन्दोस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी प्रबन्धन ने हड़ताल को तोड़ने के लिए मुंबई से मंगवाए निजी सुरक्षा कर्मियों के ज़रिए शांतिपूर्वक तरीके से आंदोलनरत मजदूरों पर गोलियां बरसा दीं जिसमें उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले मैस में कार्यरत मजदूर साथी देवदत्त शहीद हो गए। 

      साथी देवदत्त पहले भारतीय सेना में कार्यरत रहे थे व रिटायरमेंट के बाद कार्य करने के लिए परियोजना में आए थे। शासक वर्ग ने इस घटना में अपना वर्ग चरित्र दिखा दिया जब हथियारों के साथ आए निजी सुरक्षा कर्मियों की आड़ में कम्पनी द्वारा आंदोलन को दबाने के लिए बुलाए गए गुंडों को गिरफ्तार करने के बजाए पुलिस की रहनुमाई में मजदूरों के आंदोलन स्थल पर पहुंचाया गया जिन्होंने आंदोलन स्थल पर पहुंचते ही मजदूरों पर गोलियां चला दी व पुलिस मूक दर्शक बनी रही। कम्पनी की गुंडागर्दी के बावजूद भी शासक वर्ग ने अपने वर्ग चरित्र के अनुसार कम्पनी प्रबंधन पर कोई कार्रवाई करने के बजाए मजदूरों के शांतिपूर्वक आंदोलन को दबाने के लिए पूरे क्षेत्र में अनिश्चितकालीन समय के लिए धारा 144 लागू कर दी। इस दौरान पुलिस के लगभग तीन सौ कर्मियों ने आंदोलन को दबाने के लिए लगातार घेराबंदी डाले रखी व मजदूरों पर भयंकर दमन किया। आंदोलन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंघा, राम कौशल, यूनियन अध्यक्ष हरि ओम शर्मा, रणबीर सिंह, कृष्ण सिंह कश्मीरी, निशामणि, सुरेंद्र, लेखराज, नारायण डोरा, नरसिंह सहित चौदह मजदूर नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसमें साथी राकेश सिंघा छः दिनों तक जेल में रहे व बाकी सभी 65 दिनों तक जेल में रहे। आंदोलन में कॉमरेड कश्मीर ठाकुर, जगत राम, ओंकार शाद व टिकेंद्र पंवर की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

       इस तरह यह आंदोलन मजदूर-किसान एकता का एक प्रमुख गवाह बना। जहां एक ओर मजदूरों ने पहचान पत्र देने, ईपीएफ, न्यूनतम वेतन, डबल ओवरटाइम वेतन, सुरक्षा उपकरण सहित अन्य श्रम कानून लागू करने को लेकर ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोगों को रोज़गार देने, परियोजना निर्माण के कारण मकानों में आयी दरारों के लिए मुआवजा देने व स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए लोकल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (लाडा) के तहत पैसा खर्च करने सहित अन्य मांगों को लेकर हिमाचल किसान सभा के बैनर तले जबरदस्त संघर्ष हुआ। यह इस आंदोलन का ही परिणाम था कि किसानों को मुआवजे के रूप में लगभग सात करोड़ रुपये का आर्थिक फायदा मिला। इस आंदोलन में मजदूरों पर भारी दमन किया गया। सत्तासीन भाजपा सरकार के साथ ही विपक्षी कांग्रेस पार्टी भी खुलकर लुटेरी कम्पनी के साथ खड़ी हो गयी। इन दोनों ने लुटेरों की लूट सुनिश्चित करने की हर सम्भव कोशिश की परन्तु इनकी कोई भी चाल मजदूरों के हौंसलों को पस्त न कर सकी। नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना के संघर्ष ने हिमाचल प्रदेश की हर बिजली परियोजना में सीटू का लाल झंडा बुलंद करने के दरवाजे खोल दिये। यहां के मजदूर जिस भी परियोजना में गए, वहीं पर सीटू की यूनियन का निर्माण होना तय हो गया। इस परियोजना के मजदूरों के संघर्ष के कारण सीटू का नाम मजदूरों की जुबान पर चढ़ गया। सीटू मजदूरों का सबसे लोकप्रिय व पसंदीदा संगठन बन गया। सीटू की सही समझ व हस्तक्षेप के कारण मलाणा, एडी हाइड्रो, लारजी, कौल डैम, ऊहल, पार्वती, चमेरा चरण-3, रामपुर, सावड़ा कुडडु, तांगणु रमई, शिमला, टिकरी, बजोली होली, कुठेड़, लूहरी व सुन्नी डैम आदि समय - समय पर निर्माणाधीन पनबिजली परियोजनाओं में सीटू से सम्बंधित यूनियनों के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस तरह नाथपा झाकड़ी के मजदूरों ने हिमाचल प्रदेश के गौरवमयी मजदूर इतिहास में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ दिया।

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