पार्वती आंदोलन में कॉमरेड अशोक कुमार की शहादत

पार्वती आंदोलन में कॉमरेड अशोक कुमार की शहादत

विजेंद्र मेहरा

          कुल्लू जिला के सैंज व गड़शा वैली में निर्माणाधीन पार्वती पनबिजली परियोजना कुल 2051 मेगावाट की परियोजना है। नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी) लिमिटेड द्वारा बनाई जा रही यह परियोजना तीन चरणों में प्रस्तावित है। पार्वती चरण - 1 परियोजना 651 मेगावाट, पार्वती चरण - 2 परियोजना 800 मेगावाट व पार्वती चरण - 3 परियोजना 600 मेगावाट की है। खीर गंगा से बरशेणी के मध्य प्रस्तावित पार्वती चरण - 1 परियोजना का कार्य हर वर्ष लगभग सात-आठ महीने बर्फ होने का कारण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। सिऊंड, शलाह, शलवाड़ा, बिआली व लारजी के मध्य स्थित 600 मेगावाट की पार्वती चरण-3 परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। इस परियोजना का कार्य वर्ष 2007 में शुरू हुआ व वर्ष 2015 में समाप्त होकर इस परियोजना में बिजली पैदा होना शुरू हो गयी। इस परियोजना की सिऊंड स्थित डैम व हैड रेस टनल का कार्य लार्सन एन्ड टुब्रो (एल एन्ड टी) कम्पनी ने किया। बिआली स्थित पावर हाउस व व टेल रेस टनल (टी आर टी) का कार्य जैगर गैमन जॉइंट वेंचर कम्पनी ने किया। इस परियोजना में कार्यरत लगभग 1500 मजदूरों की सीटू से सम्बंधित जैगर गैमन वर्करज़ यूनियन व एल एन्ड टी वर्करज़ यूनियन दो बेहद ताकतवर यूनियनें बनीं। इन दोनों यूनियनों की संयुक्त प्रोजेक्ट कमेटी के प्रधान प्रेम देव व महासचिव दलीप सिंह बने। पार्वती चरण - 2 की तर्ज़ पर ही मजदूर - किसान एकता व संघर्ष के आधार पर मजदूरों व किसानों ने कई महत्पूर्ण जीतें दर्ज़ कीं। 

              इस परियोजना के आंदोलन की धुरी बना पार्वती चरण - 2 के मजदूरों - किसानों का ऐतिहासिक संघर्ष। यह आंदोलन का केंद्र बिंदु इसलिए रहा क्योंकि पार्वती परियोजना के तीनों चरणों में से सबसे पहले निर्माण कार्य इसी परियोजना में वर्ष 2003 की शरुआत में शुरू हुआ। एनएचपीसी ने बरशेणी स्थित डैम का कार्य सत्यम कम्पनी, शिलागढ़ स्थित एडिट का कार्य कॉस्टल कम्पनी, जीवानाला स्थित कार्य बीजेसीएल कम्पनी, सिऊंड स्थित पावर हाउस व रैला स्थित सर्ज शाफ़्ट का निर्माण कार्य गैमन कम्पनी को ठेके पर दिया था। इस परियोजना की टनल लगभग 32 किलोमीटर थी। हिमाचल प्रदेश  के मजदूर आंदोलन में पार्वती चरण - 2 के मजदूरों का आंदोलन अमर हो गया क्योंकि कॉमरेड अशोक कुमार की शहादत भी यहीं हुई। 
            परियोजना के तीन में से दो चरणों में से मजदूरों का सबसे ज़्यादा दमन भी यहीं हुआ। परियोजना के पहले चरण का कार्य अभी शुरू नहीं हुआ है। मजदूरों - किसानों पर सबसे ज़्यादा मुकद्दमे यहीं बने। मजदूरों पर शासक वर्ग के गुंडों के सबसे ज़्यादा हमले यहीं हुए। कुल्लू जिला के सैंज में 800 मेगावाट की निर्माणाधीन पार्वती पनबिजली परियोजना चरण - 2 का निर्माण कार्य गैमन कम्पनी कर रही थी। परियोजना के संघर्षरत मज़दूरों की नवगठित यूनियन के तहत गैमन कम्पनी द्वारा बनाए जा रहे पावर हाऊस व सर्ज शाफ़्ट की साइड कमेटी के अध्यक्ष अशोक कुमार पर कम्पनी के गुर्गों ने कातिलाना हमला किया ताकि मजदूर डर कर यूनियन निर्माण का कार्य छोड़ दें व कम्पनी के शोषण के आगे घुटने टेक दें। इस हमले के फलस्वरूप झारखंड से सम्बंध रखने वाले 32 वर्षीय अशोक कुमार 22 जून 2003 को शहीद हो गए। 

              मई 2003 में गैमन कम्पनी द्वारा ठेकेदारों को आबंटित कार्य में काम करने वाले 45 मजदूरों ने यूनियन का गठन कर दिया। दो सप्ताह में मजदूरों की संख्या बढ़कर 90 हो गई। यूनियन में अभी गैमन कम्पनी के मजदूर नहीं जुड़े थे। एक तरफ न्यूनतम वेतन, ओवरटाइम वेतन, सुरक्षा उपकरणों, रिहाईश, ईपीएफ, मेडिकल, छुट्टियों व अन्य सुविधाओं को लेकर मजदूर लामबंद हो रहे थे व दूसरी ओर स्थानीय लोगों को रोज़गार, ज़मीनों का उचित मुआवज़ा, परियोजना निर्माण के कारण सूख रहे पानी के स्त्रोतों को बचाने, सड़क निर्माण के कारण टूटे हुए रास्तों के पुनर्निमाण, मकानों की दरारों, रिहैबिलिटेशन एन्ड रीसेटलमेंट-आर एन्ड आर प्लान (पुनर्वास) को लागू करने, भूमिहीनों को एनएचपीसी व प्रभावितों को गैमन कम्पनी में रोज़गार देने आदि की मांगों को लेकर किसान एकजुट होने लगे। हिमाचल किसान सभा के बैनर तले किसानों ने 11 मई कोे गैमन कम्पनी को तेरह सूत्रीय मांग - पत्र सौंप कर चेतावनी दी की यदि किसानों की मांगें 21 मई तक न मानी गईं तो आंदोलन तेज़ होगा। 
                 कम्पनी द्वारा मांगें न मानने पर लगभग 175  मजदूरों और किसानों ने 21 मई को सैंज में प्रदर्शन किया। इसके बाद 31 मई तक मजदूरों - किसानों का निरन्तर संघर्ष चलता रहा। सैंज में 31 मई को लगभग 1400 किसानों ने विशाल प्रदर्शन किया जिसमें परियोजना के मजदूर भी शामिल हुए। किसानों की भारी लामबंदी से घबराकर उपायुक्त कुल्लू सैंज पहुंचे तथा कम्पनी प्रबंधन व किसानों में मौकेे पर ही समझौता करवाया। यह किसानों की जबरदस्त जीत थी। आंदोलन के दौरान 16 लोगों पर मुकद्दमे बने। इस आंदोलन का नेतृत्व तत्कालीन सीटू राज्य महासचिव डॉ कश्मीर सिंह ठाकुर, वर्तमान महासचिव प्रेम गौतम, हिमाचल किसान सभा के तत्कालीन जिला महासचिव नारायण चौहान, रवि चौहान, बक्शी राम, रणजीत ठाकुर, पूर्ण चंद आदि ने किया। बाद में मजदूर यूनियन को मजबूत करने में नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना से कुल्वक्ति के रूप में कार्य करने आए संतोष कुमार, नर सिंह, नीमा लामा आदि ने भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 

              मजदूरों के मुद्दों पर श्रम विभाग में चली समझौता वार्ता में मजदूरों की मांगों पर जून 2003 में समझौता हुआ। इस दौरान मजदूर निरन्तर संघर्षरत रहे। इसी दौरान परियोजना में विधिवत रूप से जून 2003 में गैमन वर्करज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू का गठन हो गया। शुरू में यूनियन में कम्पनी के 150 व इतने ही ठेका मजदूर थे। यूनियन की सदस्यता लगभग 300 थी। यूनियन का अध्यक्ष देवी राम व महासचिव हेमराज को चुना गया। गैमन कम्पनी द्वारा निर्मित किये जा रहे पावर हाउस व सर्ज शाफ़्ट साइड कमेटी की यूनियन कमेटी का अध्यक्ष कॉमरेड अशोक कुमार को चुना गया। अशोक कुमार स्टोर कीपर पद पर कार्यरत थे। इसी तरह डेल्टा, सोमा व रोशना आदि कम्पनियों में भी यूनियन का गठन किया गया।
                    गैमन कम्पनी मजदूरों व किसानों से किये गए समझौते को पचा नहीं पा रही थी। वह निरन्तर प्रयत्नशील थी कि किसी भी तरह मजदूर आंदोलन पर लगाम लगाई जाए। मजदूर आन्दोलन को दबाने के लिए कम्पनी प्रबंधन ने कई हथकंडे अपनाना शुरू किए। कम्पनी प्रबंधन किसी भी तरह यूनियन का निर्माण नहीं चाहता था। उसने स्थानीय गुंडा तत्वों के ज़रिए मजदूरों को डराना-धमकाना शुरू किया। कम्पनी ने इन्हीं गुंडा तत्वों को ठेकेदार बना दिया। मजदूरों को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। परन्तु मजदूर अडिग व संगठित रहे। यह बात 17 जून 2003 की है कि जब रात के लगभग 9 बजे के करीब गैमन कम्पनी के गुंडों ने सैंज बाजार में कॉमरेड अशोक कुमार पर कातिलाना हमला किया। वह गम्भीर रूप से घायल हो गए। उन्हें कुल्लू अस्पताल ले जाया गया। उनकी स्थिति बिगड़ती गयी। उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया। 

           कॉमरेड अशोक कुमार  पर हुए कातिलाना हमले के खिलाफ मजदूर भड़क गए। वे 18 से 22 जून तक दोषियों को गिरफ्तार करने और कॉमरेड अशोक कुमार को उचित चिकित्सा सुविधा देने व मेडिकल का पूरा खर्चा कम्पनी द्वारा उठाने की मांग को लेकर हर रोज़ धरना प्रदर्शन करते रहे। कॉमरेड अशोक कुमार पीजीआई में पांच दिन तक जिंदगी और मौत से जूझते रहे। अंततः 22 जून को उनकी मौत हो गयी। उनकी शहादत हिमाचल प्रदेश में सीटू के नेतृत्व में मजदूर आंदोलन की तीसरी शहादत थी। उनकी हत्या से गुस्साए लगभग 400 मजदूरों ने 23 जून से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी। मजदूरों ने 28 जून को कम्पनी कार्यालय पर उग्र प्रदर्शन किया। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया व दोषियों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ही हड़ताल समाप्त हुई। 

            यूनियन के आंदोलन से उत्साहित होकर लगभग सभी दो हज़ार मजदूर यूनियन से जुड़ गए व आंदोलन को मजबूत करके मजदूरों की अनेकों मांगें हासिल कीं। अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी थी। मजदूरों की एकता, संघर्ष व बलिदान के आगे कम्पनी व उसके गुंडे घुटने टेक चुके थे। उसके दमन व तानाशाही पर रोक लग चुकी थी। मजदूरों व किसानों की अनूठी बेजोड़ एकता ने शासक वर्ग को बतला दिया कि मेहनतकश अवाम की ताकत के आगे कोई नहीं ठहर सकता है। शोषण करने वालों की लूट, ज़ुल्म, अत्याचार व शोषण की ताकत मजदूरों व किसानों की व्यापक एकता, संघर्ष व बलिदान के समक्ष ज़्यादा देर टिक नहीं सकती है। मजदूरों ने इस आंदोलन में अपने अनुभव से सीखा कि श्रम और पूंजी की इस लड़ाई में अंतिम जीत मजदूरों की ही होती है। कॉमरेड अशोक कुमार की शहादत व पार्वती चरण - 2 के मजदूरों के आंदोलन ने हिमाचल प्रदेश के मजदूर आंदोलन में एक नया अध्याय जोड़ दिया जिस पर मजदूर वर्ग को हमेशा गर्व रहेगा।

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