आईआईटी कमांद आंदोलन - शासकों की गोलियों से फौलादी होते हैं मजदूरों के हौंसले

आईआईटी कमांद आंदोलन - शासकों की गोलियों से ज्यादा फौलादी होते हैं मजदूरों के हौंसले

विजेंद्र मेहरा

             शासक वर्ग परवाणु में शिव शंकर, नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना में देवदत्त, पार्वती पनबिजली परियोजना में अशोक कुमार व चमेरा चरण - 3 पनबिजली परियोजना में बाबू राम, विजय सिंह व दान सिंह भंडारी को शहीद करने के बाद भी अपने मंसूबों को छोड़ने वाला नहीं था। करता भी क्यों? यही उसका वर्ग चरित्र था। वर्ग विभाजित पूंजीवाद में श्रम व पूंजी की यह लड़ाई एक शास्वत है। इस कड़ी में उसके अगले हमले का शिकार मंडी जिला के कमांद में सीपीडब्ल्यूडी के अधीन कार्यरत सुप्रीम कम्पनी द्वारा निर्माणाधीन आईआईटी के छः सौ मजदूर बने। 

           सुप्रीम कम्पनी श्रम कानूनों की लगातार अवहेलना कर रही थी। उसने पिछले डेढ़ वर्ष से मजदूरों का ईपीएफ जमा नहीं किया था। मजदूरों को दो महीने से वेतन का भुगतान भी नहीं किया था। इस बात के खिलाफ मजदूरों ने सीटू से सम्बद्ध यूनियन का गठन किया व संघर्ष शुरू किया। संघर्ष के दौरान अपनी मांगों को लेकर 15 जून 2015 से लगभग छः सौ मजदूर हड़ताल पर चले गए। श्रम विभाग के हस्तक्षेप के बाद 17 जून को कम्पनी प्रबंधन ने मजदूरों से समझौता कर लिया व वायदा किया कि 18 जून को सुबह से मजदूरों के वेतन व ईपीएफ सहित सभी सभी सुविधाओं को लागू कर दिया जाएगा।                  लेकिन कम्पनी प्रबंधन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। उसने समझौते को लागू करने बजाए अपने शोषणकारी वर्ग चरित्र के अनुसार मजदूरों के आंदोलन को दबाने की सोची। इस कार्य के लिए उसने पंजाब से लगभग तीस बाउंसर व गुंडे बुला लिए थे। वे 17 जून से ही तलवारों व बंदूकों के ज़रिए मजदूरों को डराने धमकाने लगे। कम्पनी प्रबंधन के पिछले ही दिन किये समझौते से मुकरने के कारण 18 जून को भी मजदूर हड़ताल पर डटे रहे। हड़ताल पर बैठे मजदूरों के स्थल पर आकर कम्पनी के गुंडों ने मजदूरों को डराया-धमकाया व तुरन्त हड़ताल खत्म करने की धमकी दी। इस बात के खिलाफ लगभग चार सौ मजदूरों ने 19 जून को मंडी उपायुक्त कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया व इस संदर्भ में प्रशासन से मुलाकात करके ज्ञापन सौंपा। सीटू के नेतृत्व में मजदूरों ने प्रशासन को चेताया कि आईआईटी कार्यक्षेत्र में गुंडों की मौजूदगी से कोई भी अनहोनी हो सकती है परन्तु प्रशासन ने सरकार के दबाव में कम्पनी प्रबंधन पर कोई कार्रवाई करना तो दूर उसे समझाने की भी कोशिश नहीं की। 

          प्रशासन के कोई कार्रवाई न करने से कम्पनी के गुंडों के हौंसले बुलंद हो गए व उन्होंने अगले दिन 20 जून को सुबह ही आंदोलनरत मजदूरों पर गोलियां चला दीं जिसमें साथी सुंदर लाल, वीरू, गुम्मत राम व रमेश गम्भीर रूप से घायल हो गए। इन गुंडों द्वारा सोलह राउंड गोलियां चलाई गईं। घटनाक्रम की जानकारी मिलने पर स्थानीय पंचायत के लोग उग्र हो गए व उन्होंने इन गुंडों को वहां से खदेड़ दिया। इन गुंडों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हिमाचल प्रदेश के भोले-भाले लोग अपने अधिकार व अपनी रक्षा को लेकर लड़ना भी जानते हैं। लोगों की भारी भीड़ के डर से इन गुंडों ने पहाड़ियों व नालों में छलांगें लगा दीं जिसमें चार बाउंसरों की मौत हो गयी। 

       प्रशासन को मजदूरों द्वारा  बार-बार सूचित करने के बावजूद भी कोई कार्रवाई न होने से एक तरफ मजदूर गोलियों से घायल हुए व दूसरी ओर कम्पनी के चार गुंडों की जान चली गई। शासक वर्ग ने आंदोलन को दबाने के लिए एक और हथकंडा अपनाया व घटनास्थल से कई किलोमीटर दूर अपने घरों में मौजूद सीटू जिला महासचिव मंडी राजेश शर्मा व जिला उपाध्यक्ष परस राम सहित 16 लोगों को कम्पनी के गुंडों की हत्या के झूठे मुकद्दमे में गिरफ्तार कर लिया व पन्द्रह महीने तक बेवजह उन्हें जेल में रखा। इनमें से दो महिलाएं भी थीं जिन्हें तीन महीने तक जेल की सलाखों के पीछे रखा गया।

             कमांद के आंदोलन ने दिखलाया की पहाड़ों को चीरकर भवन, सड़क व सुरंगें बनाने वाले मजदूरों के हौंसलें फौलादी होते हैं व उनके हौंसलों को डिगाया नहीं जा सकता है। शासक वर्ग ने देखा कि मजदूर वर्ग अपने शोषण के खिलाफ लड़ना जानता है व बंदूक की नली से निकलने वाली गोलियों से भी नहीं घबराता है। वह आगे ही बढ़ता जाता है। उसे रोकने वाले खुद नेस्तनाबूद हो जाते हैं। मजदूरों का अस्तित्व मिटाने की सोचने वालों का अपना ही अस्तित्व समाप्त हो जाता है। जेल की सलाखें व शासकों की गोलियां भी मजदूरों के हौंसलों को पस्त नहीं कर सकती हैं क्योंकि मेहनतकश वर्ग के हौंसले चट्टानों से भी मजबूत होते हैं। इन्ही हौंसले की उड़ान, अपनी एकता व संघर्ष से मजदूर सत्ता को पलट देते हैं व शासक वर्ग के शोषण, दमन, ज़ुल्म, अत्याचार पर लगाम लगा देते हैं।

           मजदूर व मेहनतकश वर्ग इस बात को मुमकिन कर देता है कि इंसान के हाथों इंसान का शोषण बन्द हो। वह शोषणमुक्त समाज की कल्पना को सच साबित कर देता है । वह इस बात को सच साबित कर देता है कि जब मजदूर वर्ग जागृत होकर एकताबद्ध तरीके से संघर्ष करता है तो दूसरों के शोषण व लूट से सुविधाएं जुटा कर पूरे तंत्र पर धाक जमाने वाले आर्थिक व राजनीतिक तौर पर बेहद ताकतवर लोग एक दिन साधनविहीन हो जाते हैं। पूंजीपति शासक वर्ग मजदूर वर्ग की ताकत को कमतर आंकने की भूल कर बैठता है व इस बात को समझने में चूक जाता है कि यह आधुनिक सर्वहारा है जिसके पास गुलामी व शोषण की बेड़ियों को खोने के अलावा कुछ भी नहीं है जबकि पाने के लिए पूरी दुनिया है। वर्ग संघर्ष की इस लड़ाई में कमांद के मजदूरों का संघर्ष भविष्य की पीढ़ियों को हमेशा शोषण के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देता रहेगा।

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